संवाददाता
"वैवाहिक बलात्कार” कानून बनने का हुआ विरोध

लखनऊ। पुरुषार्थ सेवा ट्रस्ट ने वैवाहिक बलात्कार कानून बनाने के विरोध किया है। संस्था द्वारा कहा गया कि “विवाह” और “बलात्कार” ये दोनों शब्द अपने में ही विरोधाभासी है, लेकिन अब इन्हें पर्यायवाची बनाने के लिए महिला संगठन “वैवाहिक बलात्कार” कानून की मांग कर रहे हैं| चूँकि IPC की धारा 375 में पति पर बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता है, इसलिए इस अपवाद को हटाकर, भारत के पतियों को बलात्कारी साबित करने के लिए, महिला संगठन माननीय उच्चतम न्यायालय में गये हैं| माननीय उच्चतम न्यायालय दिल्ली में, देश की सभी प्रदेश सरकारों को “वैवाहिक बलात्कार” पर अपना पक्ष/सुझाव 15 फरवरी 2023 तक प्रेषित कर देना हैं|
घरेलू हिंसा अधिनियम जो कि महिला को अपराधी मानता ही नहीं है| सिर्फ पुरुषों के विरुद्ध बने इस लिंगभेदी कानून में “लैंगिक हिंसा” व सजा की व्यवस्था पहले से ही विद्यमान है| यदि पुरुष महिला की इच्छा के विरुद्ध सम्बन्ध बनाता है तो वह दोषी होगा और यदि पत्नी की “इच्छा” होने पर पति सम्बन्ध “नहीं” बनाता है तो भी वह पत्नी के प्रति क्रूरता माना गया है| अर्थात कानूनन पति को एक संवेदनहीन मशीन से ज्यादा कुछ नहीं माना जा रहा है| पति की तुलना अब सड़क चलते पर-पुरुष से की जा रही है| विवाहित महिला को पहले ही “यौन-स्वछंदता” का अधिकार दिया जा चुका है, जिसके अनुसार उसके लिए पति व पर-पुरुष से सम्बन्ध बनाने में कोई क़ानूनी अंतर नहीं है| अब यदि प्रेमी की बजाय पति अपने “वैवाहिक अधिकार” का दावा पत्नी पर करता है तो उसे “बलात्कारी” घोषित करने की तैयारी की जा रही है| सिर्फ पत्नी की स्वार्थता व पल-पल बदलती “इच्छा” को पूरा न करने पर अब पति को “बलात्कारी” घोषित करने की तैयारी की जा रही है, अर्थात अब बलात्कार का आरोप लगाकर पत्नी अपने पति की हत्या भी कर दे तो उसको सजा नहीं होगी| “प्रेमी से मिलकर पति की हत्या” जो हर रोज होने वाली घटना है, वह अब वैध हो जाएगी|
बलात्कार की क़ानूनी परिभाषा जिसमें “जबरन यौन सम्बन्ध” बनाने पर मेडिकल होता था उसे ख़त्म कर दिया गया है| अब सिर्फ महिला के “सहमति व इच्छा” आधारित बयान पर ही पुरुष को दोषी बताया जा रहा है| पति-पत्नी के बीच जीवन-भर बनने वाले अनगिनत यौन संबंधों में से, किसी भी पल भर के सम्बन्ध को, पत्नी कई साल बाद “इच्छा” विरुद्ध कह दे, पत्नी के सिर्फ इतना कहने मात्र पर ही पति को “बलात्कारी” घोषित किये जाने की तैयारी हो रही है| अभी तक दहेज़ के फर्जी 99% मुकदमों से जो पति, पति-परिवार दबा था, अब पति को “बलात्कारी” व परिवार को “सामूहिक-बलात्कारी” बताकर बर्बाद किया जायेगा|
संस्था ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि विवाह एक मर्यादित जीवन देने और सभ्य समाज के निर्माण के लिए बनी संस्था है| विवाह स्त्री-पुरुष के प्राकृतिक संबंधों और उससे जन्म लेने वाले बच्चों को विधिक और सामाजिक मान्यता प्रदान करता है| विवाह में कर्तव्य और अधिकार जीवनपर्यंत प्रदान किए जाते हैं| विवाह में “सहमति” सिर्फ दोनों वर-वधू द्वारा ही नहीं बल्कि उन विवाह में शामिल मां-बाप, भाई-बहन, दादा-दादी, नाना-नानी, मामा-मामी, चाचा-चाची, बुआ-फूफा, मौसी-मौसा, दीदी-जीजा, भाई-भाभी, दोस्त, यार, पड़ोसी रिश्तेदार सभी के सामने उन सबकी भी होती है| सभी धर्मों में इसकी एक स्थापित प्रक्रिया /रस्म होती है, तभी इसे पूर्ण माना जाता है| विवाह स्वत: मनमाने ढंग से समाप्त नहीं किया जा सकता है, उसकी भी एक धर्मानुसार/क़ानूनी प्रक्रिया होती है| अब विवाह की कानूनी प्रक्रिया भी बनाई गई है और कोर्ट द्वारा भी विवाह होता है व विवाह-विच्छेद भी| गलत तरीके से विवाह तोड़ना कानूनी रूप से मान्य नहीं है, हाल ही में मुस्लिम धर्म में प्रचलित इंस्टेंट (तुरंत) तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट में अपराध घोषित कर दिया है| समुचित समय देने और पक्ष रखने की व्यवस्था होने के नियम के साथ, “सहमति” वापस लेने की व्यवस्था होनी चाहिए न कि अचानक इच्छा अनुसार इक पल हां और इक पल ना| बिना जायज कारण के संबंध बनाने से इंकार करने को प्रताड़ना माना जाए न कि रेप| अपराध व सजा लिंग भेद रहित होना चाहिए| बिना किसी लिंगभेद के, घरेलू हिंसा को विवाह विच्छेद का आधार माना जाए न कि स्त्री इच्छा पर सिर्फ पुरुष के बलात्कारी घोषित होने का आधार|